हिंदी एक पुष्प-श्री सुनील कुमार
रंग बिरंगे फूल खिले है
भाषा के इस उपवन में |
सबकी अपनी सुगंध बसी है
हर मानस के मन में |
मग़र इस उपवन की शोभा को
बस एक ही पुष्प बढ़ाता
नाम पड़ा है हिंदी जिसका
और जो सबको महकाता |
अपने रस की कुछ बूंदों को
जब इसने कविता में डाला
अमर हो गए कवि देश के
पन्त प्रसाद और निराला |
जिसके मन में बसी यह भाषा
या जो इसको अपनाता |
नहीं ज़रूरत किसी प्रमाण की
वह सच्चा देश भक्त कहलाता |
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