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11 सितंबर, 2010

हिंदी पर बैठक, अंग्रेजी में लिखा-पढी

हिंदी पर बैठक, अंग्रेजी में लिखा-पढी
अमर उजाला-दॆनिक के आज दिनांक 11-09-2010 के अंक में राजभाषा हिंदी के संबंध में एक रिपोर्ट छ्पी हॆ.जरा आप भी देखिये हिंदी को लेकर कितने संवेदनशील हॆं अपने नेता ऒर अधिकारी.
जहां हिंदी की अस्मिता के सवाल पर विमर्श होना था, वहां अंग्रेजीदां अफसरों ने इसे अपमानित करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। वाकया हिंदी पखवारे के दौरान राजभाषा समिति की बैठक का है। लोक कार्मिक और पेंशन मंत्रालय ने हिंदी के बजाए अंग्रेजी में दस्तावेज उपलब्ध कराए। इससे बैठक में मौजूद सांसद बेहद नाराज हुए। एक सांसद तो इतना भड़क गए कि उन्होंने दस्तावेज के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।अफसरों की हरकत से अपमानित हुई राजभाषा गृहमंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाली संसदीय राजभाषा समिति की पिछले तीन दिन से बैठक चल रही थी। बुधवार की बैठक में 35 से अधिक सांसद मौजूद थे। समिति के सदस्य प्रभात ने बताया कि लोक कार्मिक और पेंशन मंत्रालय के अधिकारी ने दस्तावेज अंग्रेजी में हाथ से लिखकर मुहैया कराए। सदस्यों के आपत्ति करने पर हिंदी में दस्तावेज मुहैया कराने में असमर्थता जताई। जब सदस्यों ने याद दिलाया कि राजभाषा अधिनियम की धारा 3 (3) के तहत हिंदी में दस्तावेज होना जरूरी है तो अधिकारी ने जवाब दिया कि उनके मंत्रालय के पास हिंदी अनुवादकों की कमी है और वह इसे हिंदी में उपलब्ध नहीं करा सकते हैं।सांसदों ने जताई नाराजगी, फाड़ दिए दस्तावेज इसका भाजपा सांसदों ने कड़ा विरोध किया। नाराज भाजपा सांसद रमेश वैश्य ने दस्तावेज फाड़ दिए। भाजपा के तीनों सांसद रमेश वैश्य, प्रभात और अशोक अर्गल बैठक से खफा होकर उठकर चले गए। पी चिदंबरम की गैरमौजूदगी के कारण बैठक की अध्यक्षता उपाध्यक्ष सत्यव्रत चतुर्वेदी कर रहे थे। इस बारे में समिति के उपाध्यक्ष सत्यव्रत चतुर्वेदी ने बताया कि संसदीय समिति की बैठक गोपनीय होती है।अफसरों का रवैया अत्यंत आपत्तिजनक जब तक रिपोर्ट सदन के पटल पर न रखी जाए तब किसी को इस बारे में टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं होता है। इसलिए इस बारे में वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकेंगे। वरिष्ठ कवि और समीक्षक अशोक वाजपेयी ने कहा कि बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है हिंदी न तो कभी राजभाषा हो पाई है और न ही कभी होने वाली है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक वेद प्रताप वैदिक ने कहा कि हिंदी के प्रति सरकार के अफसरों का रवैया अत्यंत आपत्तिजनक है।हिंदी का सबसे अधिक अहित विभिन्न विभागों में बैठे राजभाषा अधिकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यरत हिंदी अधिकारी करते हैं। - अशोक वाजपेयी, वरिष्ठ कवि और समीक्षक